عقل مندی یا حماقت؟
از قلم: عیان ریحان ؔ حاجی پور بہار
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پچھلے کئی برسوں سے ہمیشہ کی طرح آج بھی زاہد اپنی تنخواہ جو کوئی 86400 روپے ہوگی، لے کر گھر آ رہا تھا کہ اچانک راستے میں ایک شخص نے چپکے سے اس کے پیسے چوری کرنے کی نیت سے اس کی جیب میں ہاتھ ڈالا۔ بمشکل اس کے ہاتھ کوئی 20 روپے ہی لگ پائے کہ زاہد نے اس کا ہاتھ جھٹک دیا اور خاموشی سے گھر چلا آیا۔ اسے اندیشہ تھا کہ اگر وہ اس سے لڑتا یا جھگڑتا تو اس کے بچے ہوئے 86380 روپے بلکہ اور بھی قیمتی اشیاء جن کی قیمت لاکھوں ہو سکتی ہے، وہ بھی نہ لوٹ لی جاتیں۔ اس لیے زاہد نے خاموشی سے اسے جانے دیا اور یہ سوچتے ہوئے بلکہ اپنی ہوشیاری اور اس چور پر ترس کھاتے ہوئے گھر چلا آیا کہ اس کی ہوشیاری کی وجہ سے جو اسے اور بھی زیادہ روپے ہاتھ لگ سکتے تھے بلکہ کم سے کم پورے 86400 روپے تو ضرور لگ سکتے تھے، اس نے بچا لیا۔
گھر پہنچ کر جب زاہد نے یہ داستان گھر والوں و قرب و جوار کے چند احباب کو سنائی تو انہوں نے بھی اسے شاباشی دی اور اس کی عقلمندی کی تائید کی کہ جہاں پیسوں کی واپسی کی امید نہ ہو بلکہ شبہات اور زیادہ نقصانات کا ہو، ہمیں وہاں اور نقصانات سے خود کو بچانا ہی عقلمندی ہے۔
اگلے ہی روز بغل کے ایک کم عقل شخص نے زاہد کو کسی بات کو لے کر کچھ کہہ دیا، پھر کیا تھا اس کا غصہ ساتویں آسمان پر تھا۔ بمشکل اس کے 10 سے 20 سیکنڈ کے نازیبا الفاظ جو اسے پسند نہیں آئے، اس کے بدلے میں اول تو اس نے جم کر کوئی گھنٹوں تک اسے سنایا، اس کے بعد بھی اس پورے دن زاہد کے دل کو بالکل بھی سکون میسر نہیں ہوا بلکہ کئی کئی دنوں تک وہ اس کے ان الفاظ کو سینے سے لگا کر خود کو بے چین کیے رہا کہ آخر اس نے ایسا کہہ کیسے دیا۔
کچھ ہفتوں بعد جب زاہد اپنے ایک دوست، عابد، سے ملا اور اس نے زاہد کو پریشان دیکھا تو اس نے وجہ دریافت کی۔ زاہد نے اسے ساری باتیں بتائیں اور بار بار دہراتا رہا کہ آخر اس نے میرے بارے میں ایسا بول کیسے دیا۔
عابد نے جب پریشانی کی وجہ جانی تو اولاً تو وہ زاہد پر ہنسا، بعد میں ہنستے ہوئے ہی اس نے کہا، "جب تم نے 20 روپے لٹ جانے پر بجائے باقی کے بچے ہوئے 86380 روپے لٹانے کے انہیں بچا کر ان پیسوں کو اپنی ضروریات پر صرف کیا تو مجھے تو لگتا تھا تم واقعی عقلمند ہو، مگر ان روپیوں سے بھی قیمتی وقت جو تمہیں ملا ہے، جب اس کا کوئی 10، 20 سیکنڈ کسی نے تمہیں برا کہنے پر خرچ کر دیا تو بجائے ان سیکنڈوں کو بھول کر روزانہ کے بچے ہوئے 86380 سیکنڈ کو خوش الحان جینے کے، تم ان اوقات کو بھی اسی شخص پر خود سے لٹائے اور برباد کیے جا رہے ہو۔ ایسے میں تم نے کوئی ایک دن کے 86000 سیکنڈز ہی نہیں بلکہ نہ جانے کتنے دنوں کے کتنے 86000 سیکنڈز برباد کر دیے ہیں مگر تمہیں اس کا کوئی افسوس نہیں بلکہ تم خود کو ہوشیار سمجھتے ہو۔"
اپنی اپنی بجاتے ہیں خود ڈفلیاں
خود کو کہتے ہیں پھر ہوشیار آدمی
حالانکہ یہ حال صرف تمہارا اکیلے کا نہیں ہے بلکہ تقریباً ہر شخص کا یہی حال ہے اور پھر وہی شخص کہتا ہے کہ میں اتنا پریشان، بے چین، بے سکون کیوں ہوں؟
बुद्धिमानी या बेवकूफी
पिछले कई वर्षों से हमेशा की तरह आज भी जाहिद अपनी सैलरी जो कि 86400 रुपये होगी, लेकर घर आ रहा था कि अचानक रास्ते में एक शख्स ने चुपके से उसके पैसे चोरी करने की नीयत से उसकी जेब में हाथ डाला। मुश्किल से उसके हाथ कोई 20 रुपये ही लग पाए थे कि जाहिद ने उसका हाथ झटक दिया और खामोशी से घर चला आया। उसे डर था कि अगर वह उस से लड़ता झगड़ता तो उसके बचे हुए 86380 रुपये बलकि और भी कीमती वस्तुएँ जिनकी कीमत लाखों हो सकती हैं, वह भी न लूट ली जातीं। इसलिए जाहिद ने खामोशी से उसे जाने दिया और यह सोचते हुए बलकि अपनी होशियारी और उस चोर पर तरस खाते हुए घर चला आया कि उसकी होशियारी की वजह से जो उस चोर को और भी ज़्यादा रुपये हाथ लग सकते थे बलकि कम से कम पूरे 86400 रुपये तो ज़रूर लग सकते थे, उसने बचा लिया।
घर पहुँच कर जब जाहिद ने यह घटना घर वालों और आस पड़ोस के कुछ लोगों को सुनाई तो उन्होंने भी उसे शाबाशी दी और उसकी अक्लमंदी की सराहना की कि जहां पैसों की वापसी की उम्मीद न हो बल्कि और ज़्यादा नुक़सान का डर हो, हमें वहां से खुद को और नुक़सान से बचा लेना ही अक्लमंदी है।
अगले ही रोज़ बग़ल के एक मंद बुद्धि शख्स ने जाहिद को किसी बात को लेकर कुछ कह दिया, फिर क्या था उसका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। बमुश्किल उस शख़्स के 10 से 20 सेकंड के ना पसंदीदा अल्फाज़ जो उसे पसंद नहीं आए, उसके बदले में पहले तो उसने जम कर कोई घंटों तक उसे सुनाया, उसके बाद भी उस पूरे दिन जाहिद के दिल को बिल्कुल भी सुकून मिला नहीं बल्कि कई कई दिनों तक वह उसके उन अल्फ़ाज़ को सीने से लगा कर खुद को बेचैन किए रहा कि आख़िर उसने ऐसा कह कैसे दिया।
कुछ हफ्तों बाद जब जाहिद अपने एक दोस्त, आबिद, से मिला और उसने जाहिद को परेशान देखा तो उसने वजह दरियाफ्त की। जाहिद ने उसे सारी बातें बताईं और बार बार दोहराता रहा कि "आख़िर उसने मेरे बारे में ऐसा बोल कैसे दिया।"
आबिद ने जब परेशानी की वजह जानी तो पहले तो वह जाहिद पर हंसा, बाद में हंसते हुए ही उसने कहा, "जब तुमने 20 रुपये लूट जाने पर बजाए बाक़ी के बचे हुए 86380 रुपये लूटाने के उन्हें बचा कर उन पैसों को अपनी ज़रूरतों पर खर्च किया तो मुझे तो लगता था तुम वाक़ई अक्लमंद हो, मगर उन रुपयों से भी क़ीमती वक़्त जो तुम्हें मिला है, जब उसका कोई 10, 20 सेकंड किसी ने तुम्हें बुरा कहने पर ख़र्च कर दिया तो बजाए उन सेकंडों को भूल कर रोज़ाना के बचे हुए 86380 सेकंड को ख़ुशहाल जीने के, तुम उन समय को भी उसी शख्स पर ख़ुद से लूटाए और बर्बाद किए जा रहे हो। ऐसे में तुमने कोई एक दिन के 86000 सेकंड्स ही नहीं बल्कि न जाने कितने दिनों के कितने 86000 सेकंड्स बरबाद कर दिए हैं मगर तुम्हें उस का कोई अफ़सोस नहीं बल्कि तुम खुद को अक्लमंद समझते हो।"
"अपनी अपनी बजाते हैं खुद डफलियाँ
खुद को कहते हैं फिर होशियार आदमी।"
हालांकि यह हाल सिर्फ़ तुम्हारा अकेला का नहीं है बल्कि तक़रीबन हर शख्स का यही हाल है और फिर वही शख्स कहता है कि मैं इतना परेशान, बेचैन, बेसुकून क्यों हूँ?"
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Hamari ye post aapko kaisi lagi, apni raay comment kar ke hame zarur bataen. Post padhne k lie Shukriya 🌹